यत्र गाव: प्रसन्नाः स्युः प्रसन्नास्तत्र सम्पदः । यत्र गावो विषण्णाः स्युर्विषण्णास्तत्र सम्पदः ॥जहाँ गायें प्रसन्न रहती है, वहाँ सभी सम्पत्तियाँ प्रसन्न रहती हैं। जहाँ गायें दुःख पाती हैं, वहाँ सारी सम्पदायें दुःखी हो जाती हैं।।
यत्र गाव: प्रसन्नाः स्युः प्रसन्नास्तत्र सम्पदः । यत्र गावो विषण्णाः स्युर्विषण्णास्तत्र सम्पदः ॥जहाँ गायें प्रसन्न रहती है, वहाँ सभी सम्पत्तियाँ प्रसन्न रहती हैं। जहाँ गायें दुःख पाती हैं, वहाँ सारी सम्पदायें दुःखी हो जाती हैं।।